रस्ते में जब टपरी इक आयी ,
रुकने की बेचैनी सी लायी।
मिट्टी की सौंधी खुशबु में ,
चाय की चुस्की याद सतायी।
रुकने की बेचैनी सी लायी।
मिट्टी की सौंधी खुशबु में ,
चाय की चुस्की याद सतायी।
बारिश की बूंदो से बचकर ,
आधा भीगता आधा छुपकर।
सड़क किनारे उस टपरी में ,
बैठ गया मैं चाय मंगाकर।
सड़क किनारे उस टपरी में ,
बैठ गया मैं चाय मंगाकर।
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काका ने फिर आग जलाया ,
पतीले को उसपर बिठलाया।
जन्नत का एक घोल मिलाकर ,
लहरों का उबाल फिर आया।
पतीले को उसपर बिठलाया।
जन्नत का एक घोल मिलाकर ,
लहरों का उबाल फिर आया।
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कड़क सी खुशबु थी वो पक्का ,
हाथों में जब आया फिर चुक्का।
दूर उबासी दूर हो गयी उदासी ,
सांसो में भर दी सरगोशी।
दूर उबासी दूर हो गयी उदासी ,
सांसो में भर दी सरगोशी।
नजर घुमाकर सड़क थी लम्बी ,
फिर बारिश थी और चाय की चुस्की।
फिर बारिश थी और चाय की चुस्की।
Mehnat kijye Sir Mirza Ghalib ban jayenge
ReplyDeleteWonderful poem...
ReplyDeleteThankyou sir
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