Monday, May 18, 2020

चाय की चुस्की

रस्ते में जब टपरी इक आयी ,
रुकने की  बेचैनी सी लायी।
मिट्टी की सौंधी खुशबु में ,
चाय की चुस्की याद सतायी। 

बारिश की बूंदो से बचकर ,
आधा भीगता आधा छुपकर।
सड़क किनारे उस टपरी में ,
 बैठ गया मैं चाय मंगाकर। 

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काका ने फिर आग जलाया ,
पतीले को उसपर बिठलाया।
जन्नत का एक घोल मिलाकर ,
लहरों का उबाल फिर आया। 

                 
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कड़क सी खुशबु थी वो पक्का ,
हाथों में जब आया फिर चुक्का।
दूर उबासी दूर हो गयी उदासी ,
सांसो में भर दी  सरगोशी। 


नजर घुमाकर सड़क थी लम्बी ,  
फिर बारिश थी और चाय की चुस्की। 




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