Saturday, May 23, 2020

इंसान को इंसान, फिर से अब बनाओ तुम।


आज के  इस दौर में ,
लगे है  सब ही दौड़ में ,
फिर भी कही है कोई तो रुका।
दबी सी उस आवाज को ,
तू और अब मत झुका। 


जिस पक्छ को दबाओगे,
वही तो उठ के आएगा।
तुम काटोगे जो पंख या पैर भी अगर ,
वो रेंग कर मंजिल को छू भी आएगा। 


पक्ष है विपक्ष है, ज्ञान है अज्ञान भी।
मेरा है कुछ तेरा है, सही है और गलत भी।
आज के इंसान में और इस समाज में ,
है कमी तो बस यही। 


भूखे की रोटी, प्यासे का पानी।
ज्ञानी का ज्ञान, इंसान की इंसानियत।
ये कैसा युग है आ गया ,
सब कही है खो  गया ,
जाने कहा वो सो गया। 


उस पक्छ को उठाओ तुम ,
खुद को फिर जगाओ तुम।
सभी को अपना मानकर सीने से लगाओ तुम ,
इंसान  को इंसान, फिर से अब बनाओ तुम। 




4 comments: